कब से ढूँढ रहीं हैं आँखें ,
पथराई सी थकी - थकी सी,
अब तो कुछ भी नहीं दिख रहा,
लेकिन पथ पर नज़र टिकी है।
ऐ रब क्या कभी दिख पायेगी ,
नज़र टिकी यूँ रह जाएगी ,
क्या दम तब तक टिक पायेगी
या फिर साँसे टूट जाएगी।
पथराई सी थकी - थकी सी,
अब तो कुछ भी नहीं दिख रहा,
लेकिन पथ पर नज़र टिकी है।
ऐ रब क्या कभी दिख पायेगी ,
नज़र टिकी यूँ रह जाएगी ,
क्या दम तब तक टिक पायेगी
या फिर साँसे टूट जाएगी।
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